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कंप्यूटर का इतिहास और इसका विकास-क्रम

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परिचय (Introduction)

कंप्यूटर एक ऐसा यंत्र (Device) है जो सूचनाओं को एकत्रित कर उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत करता है कंप्यूटर जटिल से जटिल गणनाओं को बहुत तेजी से तथा बिना किसी त्रुटि (Error) के संपन्न कर देता है। आजकल विश्व के हर क्षेत्र में कंप्यूटर का प्रयोग हो रहा है। आज अंतरिक्ष, फिल्म निर्माण, यातायात, उद्योग व्यापार तथा शोध का कोई भी क्षेत्र कम्प्यूटर से अछूता नहीं है। कम्प्यूटर द्वारा जहां एक तरह वायुयान, रेलवे तथा होटलों में सीटों का आरक्षण होता है वहीं दूसरी तरफ बैंकों में कम्प्यूटर की वजह से कामकाज शुद्धता तथा तेजी से हो रहा है। घरों के लिए ऐसे कम्प्यूटर मौजूद हैं जो घर का दरवाज़ा घर के सदस्य की आवाज़ सुनकर खोल देते हैं।

कम्प्यूटर के द्वारा हम ई-बिज़नेस भी कर सकते हैं। जिसे हम “ई-कॉमर्स” भी कहते हैं। कम्प्यूटर की सहायता से क्रेडिट कार्डों द्वारा ख़रीददारी भी की जा सकती है।

विश्व भर में कंप्यूटरों के परस्पर संयोजन से बना एक संचार जाल (Communicaton Network) है जिसे हम इंटरनेट कहते हैं। इंटरनेट द्वारा हम कभी भी, कहीं से भी संदेश एक शहर से दूसरे शहर में ईमेल के जरिए भेज सकते हैं

विषय – सूची

कंप्यूटर क्या है ? (What is Computer?)

what is computer in hindi
Desktop Computer
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कंप्यूटर शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के शब्द “कंप्यूट” (Compute) से हुई है, इस शब्द का अर्थ है गिनती अथवा गणना करना।

परिभाषिक शब्दों में, कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो प्रोग्राम ( निर्देशों का समूह) के नियंत्रण में डाटा को प्रोसेस करके सूचना (Information) उत्पन्न करता है। डेटा किसी भी प्रकार का हो सकता है जैसे-किसी व्यक्ति का बायोडाटा, किसी विद्यार्थी के अंक, विभिन्न यात्रियों की डिटेल (नाम, उम्र लिंग,) आदि।

कंप्यूटर में डाटा को स्वीकार करके प्रोग्राम को क्रियान्वित (Execute) करने की क्षमता होती है। कंप्यूटर में डाटा को स्वीकार करने के लिए इनपुट डिवाइस (Input Device) तथा प्रोसेसिंग के पश्चात प्राप्त परिणाम को प्रस्तुत करने के लिए आउटपुट डिवाइस(Output Device) होती है।

कंप्यूटर की विशेषताएं (Characteristics of Computer)

आजकल कंप्यूटर का उपयोग हर क्षेत्र में हो रहा है क्योंकि कंप्यूटर ही एक ऐसी स्वचालित मशीन है जो कि बहुत सारे कार्य स्वतः कर लेती है इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं।

  1. स्वचालन (Automatic) – कंप्यूटर अपने समस्त कार्य स्वचालित रूप से करता है।  एक बार सभी आंकड़े कंप्यूटर में फीड करने के पश्चात उन्हें एक निश्चित प्रोग्राम के निर्देश के अनुरूप विभिन्न कार्यों हेतु भिन्न-भिन्न रूप से विश्लेषण कर शुद्ध परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
  2. गति (Speed) – कम्प्यूटर अत्यधिक तीव्र गति से अपने कार्य को अंजाम देता है। एक मनुष्य  जितने कार्य को करने में एक वर्ष लगा देता है उतना ही कार्य एक कम्प्यूटर कुछ ही सैकेण्डों मे पूरा कर देता है। कंप्यूटर कई लाख निर्देशों को एक सेकंड में क्रियान्वित कर देता है और वह भी लगातार तथा बिना गलती किए 
  3. शुद्धता (Accuracy)– कंप्यूटर अपना कार्य बिना किसी गलती के करता है यदि आपको 8 अंकों की दो अलग-अलग संख्याओं को गुणा करने के लिए कहा जाए तो आप इसमें कई बार गलती करेंगे लेकिन साधारणः  सभी कंप्यूटर किसी भी काम को बिना किसी गलती के पूर्ण करते हैं यदि कंप्यूटर में डाले जाने वाले डेटा तथा निर्देश बिल्कुल शुद्ध हैं तो कंप्यूटर द्वारा किए जाने वाले आउटपुट भी पूरी तरह से  सही होंगे। 
  4. सार्वभौमिकता ( Versatility) – कंप्यूटर को शुरु में केवल गणित के कार्यों के लिए बनाया गया था। लेकिन इसकी क्षमताओं को देख लोगों ने कंप्यूटर का उपयोग कई तरह के कार्यों में करने लगे हैं जैसे- बैंकिग में, यातायात में, दूर-संचार आदि।
  5. उच्च संग्रह क्षमता  ( high Storage Capacity) – एक कंप्यूटर की डेटा को स्टोर करने की क्षमता बहुत अधिक होती है। कंप्यूटर में किसी भी प्रकार का डेटा स्टोर किया जा सकता है जैसे – इमेज, विडीयो, गाने आदि। कंप्यूटर डेटा को कई वर्षो तक सुरक्षित रख सकता है। 
  6. विश्वसनीयता (Reliability) – कंप्यूटर इंसानो से तेज और इंसानो से ज्यादा शुद्धता से कार्य करता है तथा इसके द्वारा किया गया कोई भी कार्य ज्यादा विश्वसनीय होगा।
  7. परिश्रमता (Diligence) – हम सभी जानते हैं कि कंप्यूटर एक मशीन है तथा वह कितना भी कार्य करे उसे थकावट महसूस नहीं होती क्योंकि वह इंसान नहीं है। यही क्षमता कंप्यूटर को अधिक परिश्रमी बनाती है। 

कंप्यूटर की सीमाएँ

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। तथा अच्छाई  के साथ बुराई भी जुड़ी होती है और कंप्यूटर भी इसका अपवाद नहीं है। इसकी भी कुछ सीमाएँ हैं, जिनका पालन वह पूरी शुद्धता से नहीं कर पाता-

  1. बुद्धिमत्ता की कमी ( Lack of Intelligence) -बुद्धिमत्ता की कमी से अभिप्राय यह है कि कंप्यूटर खुद से निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं है यूजर जो भी निर्देश इसको देता है यह सिर्फ उसका ही पालन करता है अर्थात जब तक यूजर द्वारा निर्देश नहीं दिए गए हो कंप्यूटर स्वयं कोई कार्य नहीं करता 
  2. आत्म-रक्षा में अक्षम – ( Unable to self Protection) – हमारा कंप्यूटर चाहे कितना भी शक्तिशाली हो जाए पर वह अपनी रक्षा करने में हमेशा असहाय रहता है हम उसके किसी भी पार्ट से छेड़खानी कर सकते हैं तथा उसको जो निर्देश दिये जाएंगे तो वह करता रहेगा चाहे वह गलत हो या सही हो।

कंप्यूटर का इतिहास (History of Computer)

कंप्यूटर का इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है जब चीन में एक गणना यंत्र (Calculating Machine) “अबेकस” (Abacus) का आविष्कार हुआ। यह एक मैकेनिकल डिवाइस है जो आज भी चीन, जापान आदि देशों में अंकों की गणना के काम आता है।

अबेकस ( Abacus)

A Chinese abacus

अबेकस एक तारों का फ्रेम होता है। इन तारों (Wires) में बीड ( पक्की मिट्टी के गोले जिनमें छेद होते हैं) पिरोई रहती है। इस फ्रेम के दो भाग होते हैं- छोटे भाग को Heaven तथा  दूसरे बड़े भाग को Earth कहा जाता है। फ्रेम के एक तरह के प्रत्येक तार में दो बीड होती हैं जिनमें प्रत्येक का मान 5 होता है तथा दूसरे भाग के प्रत्येक तार में 5 बीड होती हैं जिनमें प्रत्येक का मान 1 होता है। प्रारम्भ में अबेकस को व्यापारी लोग गणनाएं करने के काम में प्रयोग किया करते थे। यह मशीन अंकों की जोड़, गुणा, तथा भाग क्रियाएं करने के काम आती है।

ब्लेज पास्कल (Blaize Pascal)

Blaise Pascal

17वी शताब्दी के दौरान ब्लेज पास्कल फ्रांस में  गणितज्ञ व भौतिक-शास्त्री हुआ करते थे। उन्होंने mechanical Digital Calculator का विकास सन् 1642 ई. में किया। इस मशीन को ऐडिंग मशीन कहते थे।  क्योंकि यह मशीन केवल जोड़ या घटा कर सकती थी। यह मशीन घड़ी और ओडोमीटर के सिद्धांतों पर कार्य करती थी। इस मशीन में 10 दांतो वाली रेचेट गियर  का प्रयोग किया गया। पहले इकाई वाले रेचेट गियर का दस अंकों का एक चक्र पूरा हो जाने पर दहाई वाले रेचेट गियर का एक दांत आगे बढ़ता था। इस प्रकार दहाई वाले रेचेट गियर का दस दांतो का एक चक्र पूरा होने पर सैकेण्ड वाले रेचेट गियर का एक दांत आगे बढ़ता था। ये रेचेट गियर हाथ से घुमाये जाने वाले पहियों की सहायता से चलाये जाते थे। ब्लेज पास्कल की एडिंग मशीन (Adding Machine) को पास्कलाइन (Pascaline) कहते हैं, जो सबसे पहली Mechanical Calculating Machine थी।
इस डिवाइस की क्षमता लगभग 6  व्यक्तियों के बराबर थी आज भी कार व स्कूटर के speedometer में यही सिस्टम काम करता है।

Pascaline (Image Credit: liveauctioneers.com)

चार्ल्स बैबेज और डिफरेंस इंजिन (Charles Babbage and Difference Engine)

Charles Babbage (Image Credit: britannica.com)

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित के प्रोफेसर चार्ल्स बैबेज ने एक Mechanical Calculating मशीन विकसित करने की आवश्यकता तब महसूस की जब गणना के लिये बनी हुई सारिणियों में त्रुटि (Error) आने लगी। ये सारिणियां मानव द्वारा ही बनायी गयी थीं इसलिए इनमें त्रुटि आ सकती थी।

चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में एक मशीन का निर्माण किया जिसका नाम उन्होंने “डिफरेंस इंजिन” रखा। इस इंजिन की सहायता से Algebric Expression एवं साख्यिकीय तालिकाओं की गणना 20 अंकों तक शुद्धता से की जा सकती थी।

The Difference Engine (Image Credit: britannica.com)

चार्ल्स बैबेज का एनालिटिकल इंजिन (Charles Babbages’s Analytical Engine)

चार्ल्स बैबेज ने डिफरेंस इंजिन की सफलता से प्रेरित होकर चार्ल्स बैबेज ने एक ऐसे कैल्कुलेटिंग डिवाइस (Calulating Device) की परिकल्पना की, जिसमें उसकी एक कृत्रिम स्मृति (Artificial Memory) हो एवं दिये गये प्रोग्राम के अनुसार कैल्कुलेशन करे। इस डिवाइस को उन्होंने  बैबेज एनालिटिकल इंजिन नाम दिया। 

Analytical Engine (image Credit: britannica.com)

यह मशीन कई प्रकार के गणना संबंधी कार्य ((Computing Work) करने में सक्षम थी। यह पंचकार्डों पर संग्रहीत (Stored) निर्देशों के समूह द्वारा निर्देशित होकर कार्य करती थी। इसमें निर्देशों (instructions) को संग्रहीत करने की क्षमता थी। और इसके द्वारा स्वाचलित रूप से परिणाम भी छापे जा सकते थे।बैबेज का यह एनालिटिकल इंजिन आधुनिक कम्प्यूटर का आधार बना यही कारण है की चार्ल्स बैबेज को कंप्यूटर का जनक कहा जाता है

बैबेज का एनालिटिकल इंजिन शुरू में बेकार समझा गया था तथा उसकी उपेक्षा की गई जिसके कारण बैबेज को बड़ी निराशा हुई। परंतु एडा ऑगस्टा(Ada Augusta), जो प्रसिद्ध कवि लॉर्ड वायरन की पुत्री थी. उन्होंने बैबेज के उस एनालिटिकल इंजिन में गणना के निर्देशों को विकसित करने में मदद की। चार्ल्स को जिस प्रकार कंप्यूटर विज्ञान का जनक होने का गौरव प्राप्त है उसी प्रकार विश्व में एडा ऑगस्टा को “पहले प्रोग्रामर” होने का श्रेय जाता है। एडा ऑगस्टा को सम्मानित करने के उद्देश्य से एक प्रोग्रामिंग भाषा का नाम “एडा” (ada) रखा गया।

होलेरिथ सेंसस टेबुलेटर (Hollerith Census Tabulator)

Herman Hollerith

चार्ल्स बैबेज के एनालिटिकल इंजिन कि परिकल्पना के लगभग 50 वर्ष बाद अमेरिका के वैज्ञानिक हर्मन होलेरिथ (Herman Hollerith) ने इस परिकल्पना को साकार किया। हर्मन होलेरिथ अमेरिकन जनसंख्या ब्यूरो में काम करते थे। उन्होंने इलैक्ट्रिकल टेबुलेटिंग मशीन(Electrical Tabulating Machine) बनाई। इस मशीन में पंचकार्डों की सहायता से आँकड़ों को संग्रहीत किया जाता था। इन पंचकार्डों को एक-एक करके मशीन पर रखा जाता था। टेबुलेटिंग मशीन पर लगी सुइयां इन कार्ड्स से आँकड़ों को पढ़ने का कार्य करती थी। जब सुइयां कार्ड पर बने छिद्रों से आर-पार हो जाती थी तो वे कार्ड के नीचे रखे पारे को छू जाती थी, जिसके कारण इलैक्ट्रिकल सर्किट पूरा हो जाता था।

Electrical Tabulating Machine

इस मशीन की सहायता से जनगणना का जो कार्य 7 वर्षों में पूरा हो पाता था, अब वह मात्र 3 वर्षों में पूरा होने लगा। सन् 1886 में होलेरिथ ने इन मशीनों के व्यापार के लिए “टेबुलेटिंग मशीन कंपनी” नामक एक कंपनी बनायी। सन् 1911 तक इस कंपनी में कई और कंपनियाँ जुड़  गयीं। इन सभी कंपनियों के समूह को एक नाम दिया गया “कंप्यूटर टेबुलेटिंग रिकॉर्ड कंपनी”। सन् 1924 में इस कंपनी को नया नाम “IBM Corporation” (International Business Machine Corporation) रखा गया। सन् 1930 के समाप्त होने तक I.B.M. का विश्व के पंचकार्ड उपकरणों के बाजार के 80 प्रतिशत भाग पर कब्जा हो चुका था। I.B.M. के कारण उस समय तक के प्रचलित अधिकांश उपकरण Electro-Mechanical Equipments में परिवर्तित कर दिये गये।

डॉ. हावर्ड काईकेन का मार्क-1 (Dr. Howard Aiken’s Mark-1)

सन् 1940 में ElectroMechanical Computing शिखर तक पहुँच चुकी थी। आई.बी.एम के चार शीर्ष इंजीनियरों व डॉ. हावर्ड आईकेन सन् 1944 मे एक मशीन को विकसित किया और इसका आधिकारिक नाम ऑटोमेटिक सिक्वेन्स कंट्रोल्ड कैल्कुलेटर (Automatic Sequence Controlled Calculator) रखा। बाद में इस मशीन का नाम बदलकर मार्क-1 रखा गया। यह विश्व का पहला Electro Mechanical Computer था। इस कंप्यूटर की सहायता से सभी तरह की अंक-गणितीय गणनाएं की जा सकती थी, साथ ही Logarithm एवं trigonometry की गणनाएं करना भी संभव था।

ए.बी.सी. (The A.B.C)

आईकेन और IBM के मार्क-1 की तकनीक, नई इलैक्ट्रॉनिक्स तकनीक के आने से पुरानी हो गयी थी। नयी इलैक्ट्रॉनिक तकनीक मशीनों में विद्युत की उपस्थिति व अनुपस्थिति का सिद्धांत था। इसमें कोई भी चलायमान (movalbe) पुर्जा नहीं था इसलिए यह विद्युत यांत्रिक (Electro Mechanical) मशीन से तेज गति से चलता था

सन् 1945 में एटानासोफ (Atanasoff) ने एक इलैक्ट्रॉनिक मशीन को विकसित किया, जिसका नाम ए.बी.सी (A.B.C) रखा गया। ABC, Atanasoff Berry Computer का संक्षिप्त रूप है। ABC सबसे पहला इलैक्ट्रॉनिक कंप्यूटर था।

कंप्यूटर की पीढ़ियाँ (Generations of The Computer)

कंप्यूटर के विकास क्रम को समझने के लिए पाँच पीढ़ियों में बाँटा गया है। इससे कंप्यूटरों की तकनीक में हुई प्रगति की जानकारी समझने में मदद होती है। कंप्यूटर के सिद्धांत या उसके किसी भाग के नवीन रूप में विकसित होने पर  एक नयी पीढ़ी की शुरुआत होती है।

कंप्यूटर की पीढ़ियाँ निम्न प्रकार हैं –

क्रम. पीढ़ी (Generation) काल (Period) तकनीक
(Technology used)


1 प्रथम पीढ़ी (1st Gen.) 1946-1956 वैक्यूम ट्यूब
2 द्वितीय पीढ़ी (2nd Gen.) 1956-1964 ट्रांजिस्टर
3 तृतीय पीढ़ी (3rd Gen.) 1964-1970 IC (integrated Circuit)
4 चतुर्थ पीढ़ी (4th Gen.) 1970-1985 VLSI
5 पंचम पीढ़ी (5th Gen.) 1985 – अब तक ULSIC With AI

प्रथम पीढ़ी – First Generation)

एनिएक (ENIAC) – वैक्यूम ट्यूब के आविष्कार के साथ ही प्रथम संपूर्ण इलैक्ट्रॉनिक कंप्यूटर बनाया गया , इसका नाम ENIAC (Electronic Numerical Integrator and Computer) रखा गया।

वॉन न्यूमान और संग्रहीत की विचारधारा

एनिएक कंप्यूटर के ऑपरेटर्स की मुख्य समस्या यह थी की प्रत्येक नयी कैलकुलेशन  के लिए उन्हें कंप्यूटर में तारों के नए संयोजन करने पड़ते थे, जिसमें काफी समय व्यर्थ होता था। इसके समाधान के लिए 1945 में  JOHN VON NEUMANN ने Eckert, Mauchly, Goldstein तथा Burks के साथ मिलकर एक कंप्यूटर तैयार किया जिसमें Data के साथ-साथ निर्देशों को भी संचित किया जा सकता था। इसे Stored Program Concept के नाम से जाना जाता है। इसके बाद के सभी कंप्यूटर इसी Concept पर आधारित होते हैं।

50 के दशक के वर्षों में निर्मित UNIVAC-I (Universal automatic Computer) पहला कंप्यूटर था जिसे बाजार में विक्रय  के लिए उतारा गया था।

प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर के गुण

  1. प्रथम पीढ़ी के कंप्यूटर में वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग किया जाता था।
  2. यह साइज में काफी बड़े होते थे।
  3. यह जल्दी गर्म हो जाते थे।
  4. Inputs तथा Outputs के लिए पंचकार्डों का प्रयोग किया जाता था।
  5. इनमें मशीन तथा असेम्बली भाषा  का प्रयोग किया जाता था।

द्वितीय पीढ़ी – (Second Generation)

द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर में वैक्यूम ट्यूब की जगह ट्रांजिस्टर का प्रयोग किया जाने लगा था। इस नयी तकनीक से कंप्यूटर में एक नये युग की शुरुआत हुई। ट्रांजिस्टर का आविष्कार 1947 में William Shockley द्वारा किया गया था। वैक्यूम ट्यूब की अपेक्षा ट्रांजिस्टर आकार में छोटा होता था तथा लगातार  विद्युत के संवहन से कम गर्म होता था।

 द्वितीय पीढ़ी के कंप्यूटर के गुण –

  1. पंचकार्ड के साथ-साथ मेेग्नेटिक टेप और डिस्क का भी प्रयोग किया जाने लगा।
  2. मेग्नेटिक ड्रम के स्थान पर मेग्नेटिक कोर मेमोरी का प्रयोग किया जाने लगा।
  3. मशीन भाषा तथा असेम्बली भाषा कि जटिलताओं को दूर करने के लिए सरल एवं उच्च स्तरीय भाषाओं का विकास किया गया जैसे- FORTRAN, COBOL, SNOBOL, ALGOL आदि।

तृतीय पीढ़ी – (Third Generation)

सन् 1964 से सन् 1970 तक के कंप्यूटर्स को तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर्स की श्रेणी में रखा गया है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स में ट्रांजिस्टर के स्थान पर Integrated Circuits का प्रयोग किया गया था। एक I.C. (Integrated Circuits) में ट्रांजिस्टर, रेजिस्टर और कैपेसिटर तीनों को ही समाहित किया गया था।

सन् 1938 में Texas Instrument Company के जे.एस. किल्वी ने सिलिकॉन के छोट से चिप पर एक IC बनाया। 

सन् 1953 में हार्विच जॉनसन ने इस तकनीक को MOSFET (Metal Oxide Semi-Conductor or Field Effect Transistor) के नाम से पेटेन्ट करा लिया। सन् 1966 में एक ही चिप पर हजारों ट्राजिस्टर को बना पाना संभव हो गया था। जिस कारण कंप्यूटर्स का आकार पहले की पीढ़ियों की तुलना में बहुत छोटा हो गया था। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स में Vdieo Dishplay Unit का भी प्रयोग किया गया था।

तृतीय पीढ़ी के कंप्यूटर के गुण –

  1. तृतीय पीढ़ी में कंप्यूटर्स की नयी उच्च स्तरीय भाषा का विकास हुआ जिसका नाम BASIC रखा गया। यह सीखने में काफी सरल थी ।
  2. कंप्यूटर्स के कार्य को नियंत्रित करने के लिए ऑपरेटिंग सिस्टम बनाया गया।

चतुर्थ पीढ़ी – (Fourth Generation)

सन् 1970 से लेकर 1985 तक के कंप्यूटर्स को चतुर्थ पीढ़ी में रखा गया  LSI (Large Scale Integration) और फिर सन् 1975 में VLSI ( Very Large Scale Integration) चिप निर्माण से पूरी Controle Processing Unit का एक ही चिप पर आ पाना संभव हो गया। यह चिप अंगुली के नाखून के आकार की होती है।सन् 1970 में तैयार किये गये इस चिप का नाम Intel 4004 था और इस छोटे से चिप को माइक्रोप्रोसेसर कहा गया तथा जिन कंप्यूटर्स में माइक्रोप्रोसेसर का प्रयोग किया गया उन्हें माइक्रो-कंप्यूटर कहा गया।

Intel 8080 पर आधारित पहला माइक्रो कंप्यूटर “आल्टेयर”  MITS नामक कंपनी ने बनाया। इस कंप्यूटर की मेमोरी 1KB थी MITS कंपनी ने बिल गेट्स को आल्टेयर में BASIC भाषा इन्सटॉल करने के लिए कहा। बिल गेट्स का यह प्रयास सफल रहा तथा इसी के बाद बिल गेट्स ने माइक्रोसॉफ्ट कंपनी की स्थापना की जो आज दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ़्टवेयर कंपनी है।

चतुर्थ पीढ़ी के कंप्यूटर के गुण –

  1. चतुर्थ पीढ़ी में कंप्यूटर के आकार को न्यूनतम किया गया। 
  2. पहले की पीढ़ी में प्रयुक्त कोर मेमोरी की जगह अब सेमी-कंडक्टर का प्रयोग होने लगा।
  3. इस पीढ़ी के कंप्यूटर में एप्लीकेशन, डाटाबेस का कार्य करने वाले सॉफ्टवेयर तैयार हुये।

पंचम पीढ़ी के कंप्यूटर्स (Fifth Generation Computers)

सन् 1985 से अब तक के कंप्यूटर्स को पांचवी पीढ़ी में रखा गया है। इन कंप्यूटर्स में अद्भुत चीजों का समाहित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास पर जोर दिया जा रहा है। इस पीढ़ी के कंप्यूटर्स अभी भी विकास-शील स्थिति में हैं इन पर अभी काफी विकास कार्य होना बाकी है।

पंचम पीढ़ी के कंप्यूटर्स के गुण –

  1. पंचम पीढ़ी के कंप्यूटर्स को यूजर की जरूरत के अनुसार कंप्यूटर की संरचना को तैयार किया जाता है। आजकल विभिन्न आकारों में कंप्यूटर्स उपलब्ध हैं जैसे – डेस्कटॉप, लैपटॉप, पामटॉप, टैबलेट आदि।
  2. पांचवी पीढ़ी में मल्टीमीडिया का बहुत विकास हुआ है।
  3. इंटरनेट का अधिक मात्रा में उपयोग बढ़ा।

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